फसल उत्पादन में पाये जानेवाली असाधारण कमी, अधिकतर किसानों की प्राकृतिक या जैविक कृषि प्रणाली से दरकिनार होने की प्रमुख वजह हैं
दूध उत्पादन में पाये जानेवाली विलक्षण कमी, पशुपालक द्वारा अपने व्यवसाय में स्वदेशी गायों के त्याग की प्रमुख वजह हैं
मिट्टी के अनुकूल जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है … मिट्ट मुलायम, भरभरी एवं उर्वरक बनती हैं … पौधों के विभिन्न अंगों की वृद्धि होती है
मिट्टी सुधार हेतु किसान गोबर का प्रयोग करते हैं, जो सामान्यतः अप्रसंस्कृत होता है. जबकी उन्हें गोबर के इस्तेमाल का उद्देश्य भी नहीं मालुम
अप्रसंस्कृत गोबर में सामान्यतः पौधों की जड़ों के लिए हानिकारक मिट्टी शत्रु कीट भारी मात्रा में पैदा होती रहती हैं
मिट्टी शत्रु कीट विभिन्न प्रकार की फफूंद, खरपतवार, कृमि और दीमक इत्यादि की जननी होती है
मतलब … अप्रसंस्कृत गोबर का उपयोग करके किसानों को हानिकारक शत्रु कीटयुक्त मिट्टी प्राप्त होगी एवं इनके उपचार हेतु खर्च भी बढ़ता हैं
बेहतर मिट्टी संरचना हेतु मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में, स्वस्थ, गुणवत्तायुक्त एवं मिट्टी-अनुकूल जीवाणु होने आवश्यक हैं
स्वदेशी गायों का गोबर इन जीवाणुओं के भोजन के रूप में मिट्टी में डाला जाता है … अतः इसका अच्छी तरह से प्रसंस्कृत होना बहुत ज़रूरी है
भैंस या अन्य नस्ल की गाय का गोबर स्वदेशी गाय के मुकाबले गुणकारी या असरदार नहीं होता
पशुपालन के व्यवसाय में से स्वदेशी गाय लुप्त हो रही हैं, इसीलिए उनका गोबर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं
गोबर, चाहे वह स्वदेशी गायों का ही क्यों न हो … उसका गुणवत्तायुक्त जैविक अपघटक के माध्यम से प्रसंस्कृत होना आवश्यक हैं
पर्याप्त मात्रा में स्वदेशी गायों का गोबर प्राप्त करने हेतु, पशुपालन में देशी नस्ल की गायों का समावेशन अत्यंत आवश्यक है
गुणवत्तायुक्त गोबर प्राप्त करने हेतु, देशी नस्ल की गायों का स्वस्थ एवं तंदुरस्त होना भी आवश्यक है
पर्याप्त संख्या में एवं स्वस्थ देशी नस्ल की गायें हासिल करने तथा उनकी उचित देखभाल हेतु ... मौजूदा अविकसित गौशालाओं का उन्नयन हो
आमतौर पर किसान प्रति एकड़ कृषि भूमि, औसतन दो से तीन ट्रॉली गोबर का प्रयोग करते हैं
हमारे पूर्वजों की तरह आजकल किसान मवेशी नहीं पालते … इसलिए, किसानों को गोबर खरीदना पड़ता है
गोबर हेतु औसतन खर्च प्रति ट्रॉली 04 हज़ार रुपये है. मतलब: किसान गोबर हेतु प्रति एकड़ औसतन 10 हज़ार रुपये खर्च करते हैं
बेहतर मिट्टी संरचना हेतु केवल प्रसंस्कृत गोबर पर्याप्त नहीं है ... कई अन्य पोषक तत्वों या कृषि सामग्रियों की भी आवश्यकता होती है
किसान बेहतर मिट्टी उर्वरता हेतु माइकोराइजा, पोटेशियम ह्यूमेट, सीवीड, एमिनो, ह्यूमिक, फुल्विक आदि जैसे कई कृषि पदार्थ का प्रयोग करते हैं
कुल मिलाकर किसान गोबर, यूरिया, डीएपी जैसे उर्वरक एवं अन्य कृषि सामग्री के पीछे प्रति एकड़ औसतन 15 से 20 हज़ार रुपए खर्च करते है
अगर हम छोटे से छोटे किसान की भी बात करें तो, अप्रसंस्कृत गोबर का औसतन प्रयोग 04 से 05 मीट्रिक टन प्रति एकड़ है
यदि हमारे किसान केवल प्रसंस्कृत गोबर का उपयोग करना शुरू कर दें तो इसकी आवश्यकता घटकर 400 से 500 किलो प्रति एकड़ रह जाएगी
किसान आम तौर पर अप्रसंस्कृत गोबर हेतु प्रति एकड़ 08 से 10 हजार रुपये खर्च करते हैं
प्रसंस्कृत गोबर को मूल उर्वरक के रूप में उपयोग करने पर प्रति एकड़ लागत केवल 04 से 05 हजार रुपये होगी
गाय या भैंस का गोबर
सामान्यतः गोबर के माध्यम से गौशाला समिति वर्ष में एक या अधिकतम दो बार आय अर्जित कर पाती है
आस-पास के गांवों के किसान साल में एक बार मिट्टी में डालने हेतु गोबर खरीदते हैं
आय का कोई अन्य नियमित आधार नहीं
अक्षम वित्तीय व्यवस्था
संसाधनों के बारे में जानकारी या ज्ञान की कमी
गौशाला के विकास हेतु कार्यसमिति की रुचि या सकारात्मक इरादे का अभाव
उपलब्ध संसाधनों के आधार पर राजस्व सृजन हेतु जटिल प्रक्रियाएं
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