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01. हमें नियमित रूप से दिन में दो बार अपने खेत का दौरा करना चाहिए. पत्तियों और फसल की सही स्थिति और आवश्यक कार्यवाही का अंदाजा लगाने के लिए सुबह और दोपहर में एक या दो घंटे खेत में बिताना चाहिए. उचित समय पर जरुरी कार्यवाही करने से संभावित हानि से बचकर अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है
02. किसान मित्रों को कार्यक्षेत्र के नियमित दौरे के दौरान खेत में खरपतवार की मात्रा, पौधों के स्वास्थ्य, पौधों की शाखाओं और पत्तियों आदि पर कड़ी नजर रखनी चाहिए.
03. शुरुआत में जब खरपतवार बहुत आंशिक हो तो खरपतवार की दर पर नजर रखकर इसे नष्ट करने के लिए उपयुक्त तत्वों से युक्त पदार्थों का उपयोग करके कम खर्च पर इसके प्रकोप से पौधों के स्वास्थ्य, फसल की गुणवत्ता और फसल उत्पादन में संभावित नुकसान से बचा जा सकता हे एवं अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है
04. पौधों की शाखाओं का बारीकी से और नियमित रूप से निरीक्षण किया जाना चाहिए
सूखा ... शुरू में केवल एक या दो शाखाएं मुरझाए हुए दिखाई देंगी. आगे चलकर निकटवर्ती शाखाएं भी मुर्जा जाएँगी ... धीरे धीरे पूरा पौधा मुरझा जायेगा
निदान: पौधों की जड़ें मिट्टी जनित कीटों द्वारा कमजोर हो सकती हैं
उपाय: पौधों की जड़ो में पोषण एवं सुरक्षा प्रदानकर्ता तत्वों का सिंचन करना. तदुपरांत मिट्टी में पोषक तत्वों का सिंचन भी जरूरी है
05. पौधों की पत्तियों का बारीकी से और नियमित रूप से निरीक्षण किया जाना चाहिए
पत्तियों का सिकुड़ना (पत्तियों का आकार अवतल हो जाना) :-
निदान: पत्तियों पर थ्रिप्स, माइट्स, मोथ, माइट्स या कटवर्म जैसे कीटों का संभावित हमला
उपाय: पत्तियों पर उपरोक्त कीटों को नष्ट करने वाले पदार्थों का छिड़काव करना चाहिए
पत्तियों पर चिपचिपे पदार्थ का दिखना (पत्तियाँ आकार में उत्तल न हों) :-
निदान: पत्तियों पर रसचूसक कीटों या पतंगों का संभावित हमला
उपाय: उपरोक्त कीटों को नष्ट करने वाले तत्वों से युक्त पदार्थों का पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए
पत्तिओ पे छिद्रो का दिखना :-
निदान: पत्तियों पर विभिन्न प्रकार की इल्लियों का संभावित हमला
उपाय: पत्तियों पर इल्लियों को नष्ट करने वाले पदार्थों का छिड़काव करना चाहिए
पत्तियों पर सिलबट्टे के धब्बे और पत्तिओ का बाहरी सतह से जल जाना :-
निदान: पत्तियों में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों की कमी से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है. पौधे के लिए आवश्यक भोजन की मात्रा में कमी संभव है
उपाय: पत्तिओ पर जिंक, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा और अमीनो जैसे पदार्थों का छिड़काव करना चाहिए
06. फूल आने और फल लगने की अवस्था के दौरान, पौधों पर फूलों की पंखुड़ियों के अनुपात का नियमित और सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया जाना चाहिए
फूलों की विफलता का चिंताजनक प्रमाण :-
निदान: पौधों में फूल आने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक फुल्विक और जिबरेलिक जैसे तत्वों की कमी
उपाय: पौधों पर उपरोक्त पोषक तत्वों का नियमित और व्यवस्थित छिड़काव करना चाहिए
07. पौधों पर लगे फूलों और फलों का नियमित और सावधानीपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए
फूलों के झड़ने की शुरुआत :-
निदान: फूल आने की अवस्था में फूलों को झड़ने से रोकने वाले कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और एल्गिनिक जैसे तत्वों की मात्रा में कमी संभव
उपाय: पत्तियों पर उपरोक्त तत्वों का नियमित और व्यवस्थित छिड़काव करना चाहिए
फलों के गूदे की कम मात्रा और विकृत एवं धब्बेदार फल :-
निदान: सूक्ष्म पोषक तत्वों, पोटाश और बोरान जैसे तत्वों की संभावित कमी जो नियमित निषेचन द्वारा फलों को सुडौल, चमकदार, मोटा, पोषित और स्वादिष्ट बनाते हैं
उपाय: उपरोक्त प्रकार के तत्वों युक्त पदार्थों का नियमित अंतराल पर निषेचन के प्रारंभिक चरण में व्यवस्थित छिड़काव करना चाहिए
बुजुर्गों और अनुभवी लोगों की सर्व सामान्य सलाह ... जैसा बोओगे वैसा काटोगे ... बात सीधी है ... कृषि में बुआई से पहले और साथ ही बुआई के दिनों के दौरान मिट्टी के अनुसन्धान में पालन की जाने वाली उचित प्रक्रियाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं. हम सभी जानते हैं की अगर गर्भवती महिला गर्भधारण करने से पहले स्वस्थ और मजबूत हो तो गर्भधारण की प्रक्रिया आसान और कुशल हो जाती है. दो फसलों की खेती के दौरान इस बात को ध्यान में रखते हुए नई फसल बोने से पहले यदि हमारी मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों का संचार किया जाए तो बुआई के दौरान लगाए जाने वाले बीज अच्छे से अंकुरित हो सकते हैं. आज खेती में उपयोग किए जाने वाले बीज या पौधे पहले से ही विशेष प्रक्रियाओं द्वारा संशोधित और सक्षम होते हैं. लेकिन मिट्टी का प्रकार और जलवायु भिन्न-भिन्न क्षेत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न होते है. यदि हम सभी किसान मित्र अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु के अनुसार सावधानीपूर्वक योजना बनाकर बुआई करेंगे तो बुआई के चरण में सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त कर सकेंगे
01. नई फसल के बीज या पौधे की बुआई से पहले मिट्टी में पोषक तत्वों युक्त पदार्थो का सिंचन करना चाहिए. फसल काटने के बाद मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है. कम्पोज्ड उर्वरक या इसी तरह के प्राकृतिक पदार्थों के सिंचन के माध्यम से मिट्टी उपजाऊ हो जाती है और नई फसलों की खेती के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त करने में सक्षम हो जाती है
02. बुआई के समय बीज या पौध को मृदा जनित कवक, विषाणु, कृमि, बेधक, इल्लियों, कटवर्म और हानिकारक केंचुए से बचाना आवश्यक है. अंकुरण की प्रक्रिया इस चरण में उन पदार्थों के विवेकपूर्ण उपयोग से सफलतापूर्वक पूरी की जा सकती है जो अंकुरण में बीज या अंकुरों की सहायता और सुरक्षा करते हैं और विभिन्न प्रकार के मिट्टी-जनित जीवों से जड़ों की रक्षा करते हैं
03. बीजों को अंकुरण में मदद रूप एवं अधिकतम और कुशल सफेद सूक्ष्म जड़ें प्रदानकर्ता तथा इन सूक्ष्म जडो को सुरक्षित रखनेवाले पोषक तत्व युक्त पदार्थो का इस्तेमाल करने से सूखा जैसे रोगों से पौधों को बचाया जा सकता है. हम सभी जानते हैं कि मजबूत एवं महत्तम सूक्ष्म जडो का सीधा सम्बन्ध पौधों के विकास, वर्धन, शक्ति, सुरक्षा और दीर्घायु से होता है
03. बीजों को अंकुरण में मदद रूप एवं अधिकतम और कुशल सफेद सूक्ष्म जड़ें प्रदानकर्ता तथा इन सूक्ष्म जडो को सुरक्षित रखनेवाले पोषक तत्व युक्त पदार्थो का इस्तेमाल करने से सूखा जैसे रोगों से पौधों को बचाया जा सकता है. हम सभी जानते हैं कि मजबूत एवं महत्तम सूक्ष्म जडो का सीधा सम्बन्ध पौधों के विकास, वर्धन, शक्ति, सुरक्षा और दीर्घायु से होता है
05.संक्षेप में इस चरण के दौरान बीजों या पौधों की अंकुरण एवं सुरक्षा, सफेद रेशेदार सूक्ष्म जड़ों का निर्माण, संरक्षण एवं पोषण, मिट्टी की उर्वरता, मिट्टी के तापमान एवं पीएच आदि का नियंत्रण जैसे मुद्दों को ध्यान में रखा जाए तो सक्षम और स्वस्थ फसल के माध्यम से किसान मित्रो महत्तम आय प्राप्त कर सकते हे
यदि हम सभी अपने बच्चे के जन्म के बाद के दिनों में उसकी देखभाल और पोषण की प्रक्रिया को याद रखें तो जैसे हम अपने बच्चों के जन्म के बाद पर्यावरण से होने वाली बीमारियों, अत्यधिक रोशनी और शोर, पचाने में मुश्किल होने वाले भोजन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की चोटों आदि से सुरक्षित रखने की कोशिश करते है, ठीक वैसे ही यदि हम खेत में अपने पौधे के प्रारंभिक विकास के चरण में अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का सावधानी एवं समझदारी से पालन करे तो, हम अपने पौधे को पोषित, विकसित और सक्षम बना सकते हैं
01. अंकुरण के बाद 10 से 20 दिनों के दौरान, मिट्टी में पोषक एवं रक्षक तत्वों युक्त पदार्थो का सिंचन करने से पौधों की जड़ों को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीटों से बचाया जा सकता है. मिटटी से पोषक तत्वों को अवशोषित करने की उनकी क्षमता बढ़ सकती है और उन्हें स्वस्थ एवं सक्षम रखा जा सकता हे
02. पौधे की पत्तियां ही पौधे की रसोई होती हैं. बुआई के कुछ दिनों बाद, जब मिट्टी से पौधों की एक या दो डाली और पत्तियां दिखाई देती है तब से आनेवाले 60 दिनों के दरम्यान पौधे की अंकुरित पत्तियों पर अपना निरंतर ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. यदि पौधे की पत्तियाँ सुरक्षित, पोषित एवं सक्षम होंगी तो प्रकाश संश्लेषण की कुशल प्रक्रिया के कारण पौधे के प्रारंभिक विकास एवं वृद्धि के लिए आवश्यक भोजन एवं पोषण आवश्यक एवं सुव्यवस्थित मात्रा में उपलब्ध होगा. इसके लिए पौधों की पत्तियों को चूसक और विभिन्न प्रकार की इल्लियों और पतंगों से बचाने पर ध्यान देने से पौधों को उनके प्रारंभिक विकास और वृद्धि में काफी हद तक मदद मिलेगी
03. इस चरण में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में और भरभरा बनाने में मदद रूप विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं तथा पौधों एवं पत्तिओ के विकास, वृद्धि और सक्षमता के लिए आवश्यक एवं अति महत्वपूर्ण नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, फेरस, ह्यूमिक, अमीनो, फुल्विक, प्राकृतिक कार्बन वगेराह पोषक तत्वो का संचार करना अत्यंत आवश्यक है
04. जिस तरह से हमारे बच्चों को जन्म के बाद शुरुआती दिनों में हल्का और पौष्टिक भोजन देने मात्र से उनको स्वस्थ एवं सक्षम रखा जा सकता हे, उसी तरह पौधों को शुरुआती विकास और विकास चरण में पत्तिओ द्वारा केवल प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के स्वयवभू नियमन मात्र से जरुरी न्यूनतम गुणवत्ता और मात्रा में भोजन उपलब्ध करवाके पौधों को जरुरी पोषण एवं सक्षमता प्रदान कर सकते हे
05. पौधे का भूमि के ऊपरी सतह से बाहर आने के 30 से 40 दिनों के दौरान पौधों की वृद्धि, वृद्धि और मजबूती के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति पौधे की पत्तियों द्वारा स्वचालित रूप से नहीं की जा सकती है, इसलिए जरुरी पोषक तत्वों की आपूर्ति मिट्टी में सिंचाई और पौधों की डलिओ एवं पत्तिओ पर उनका छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करने से की जा सकती है
पौधों के वानस्पतिक विकास एवं वृद्धि की इस अवस्था में पौधों के विभिन्न अंगों के पोषण, सुदृढ़ीकरण एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक तत्वों का उचित एवं विवेकपूर्ण उपयोग अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है. विशेषकर इस चरण में महत्वपूर्ण पहलू ये है की पौधों के विकास, वृद्धि, मजबूती, अंकुरों की सुरक्षा एवं फसल के हिसाब से जरूरी तमाम पोषक तत्वों का संचार. हम सभी किसान मित्र यह अच्छी तरह से जानते हैं कि पौधों के विभिन्न अंगो को सुरक्षा और पोषण प्रदान करने के लिए मिटटी में सिंचाई और पौधों के विभिन्न अंगो पर छिड़काव के माध्यम से जरुरी पोषक तत्वों का उपयोग विवेकपूर्ण और सटीक मात्रा में किया जाना चाहिए
01. पौधों के विभिन्न अंगो को मजबूत करने तथा फसल की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए पोटाश युक्त पदार्थों को मिट्टी में मिलाना चाहिए या उनका पौधे के विभिन्न अंगो पर छिड़कना चाहिए
02. पौधों के विभिन्न अंगो के विकास, वृद्धि और मजबूती के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आर्यन, बोरान, तांबा और मोलिब्डेनम पोषक तत्वों का उपयोग किया जाना चाहिए
03. पौधों के विभिन्न अंगो को चुसिया किस्म के किटक, थ्रिप्स, माइट्स, कथिरी, मोलो, मुसी, पप्ती, विभिन्न प्रकार की इल्लियों और विभिन्न प्रकार के कवक और वायरस जैसे रोगों से सुरक्षित रखने के लिए कैलोट्रोपिक्स, धतुरो, नीम, करंज, विभिन्न प्रकार के पौधों की छाल और फूलों के अर्क, सैकराइड्स, अरंडी का तेल, इमल्सीफायर, अमीनो और क्यूएस युक्त पदार्थों का उपयोग विवेकपूर्ण और सटीक मात्रा में किया जाना चाहिए
04. पौधों की पत्तियों तथा विभिन्न अंगों में पोषण की कमी के कारण विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होने पर लौह, नींबू तथा विभिन्न प्रकार के सांद्र पदार्थों का उपयोग विवेकपूर्ण और सटीक मात्रा में किया जाना चाहिए
किसान मित्र फूल आने की प्रक्रिया या फूल आने और फल लगने की अवस्थाओं के महत्व को अच्छी तरह से जानते हैं. पौधारोपण के बाद चरणबद्ध मेहनत और देखभाल के बाद किसान मित्रों को जिस समय का बेसबरी से इंतजार रहता है वह है फूलों के खिलने और निषेचन का समय. यानि कि यह चरण खेती का सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है. आय का प्रमुख स्रोत फसल उत्पादन और फसल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है. इस चरण में यदि अन्य चरणों की तरह आवश्यक प्रक्रियाओं का सावधानीपूर्वक पालन किया जाए तो उस फसल की खेती की पूरी प्रक्रिया सफलतापूर्वक एवं अर्थपूर्ण तरीके से संपन्न होती हे
01.फूल आने की अवस्था को ध्यान में रखते हुए समय रहते हुए ही ऐसे पदार्थों का उपयोग करना चैहिये जिससे की पौधे की वानस्पतिक वृद्धि को नियंत्रित किया जा सके. जिससे पौधे की नसों के माध्यम से आवश्यक पोषण मिलेगा एवं फूल आने की प्रक्रिया तेज हो जाएगी तथा फुलों की संख्या भी बढ़ेगी
02. फूल आने की अवस्था में फूलों को बैठाना जितना आवश्यक है उतना ही उन्हें झड़ने से रोकना भी आवश्यक है. यदि फूल आने के शुरुआती दिनों में विशेष प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जाए तो इस प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है जिससे फूलों की संख्या यानि योगदान की संख्या बढ़ाई जा सकती है और फसल की अधिकतम उपज प्राप्त की जा सकती है
03. पुष्पन चरण को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद फलन चरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इस अवस्था में फूल से परिवर्तित फल गिरे नहीं और सही आकार के, मोटे, चमकदार, पौष्टिक और स्वादिष्ट फलों की प्राप्ति होगी
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